खुला दिमाग़ तो फिर दिल को साफ़ करना पड़ा मिरी वफ़ा का उसे ए'तिराफ़ करना पड़ा वो अपने चेहरे पे रखता था दूसरा चेहरा फ़रेब खा के मुझे इंकिशाफ़ करना पड़ा थीं ऐसी कौन सी मजबूरियाँ तुम्हारे लिए कि अहल-ए-दिल से तुम्हें इख़्तिलाफ़ करना पड़ा चहार सम्त गुनाहों के हाथ फैले थे इसी लिए तो मुझे एतकाफ़ करना पड़ा दिया जब अपनी अदाओं का वास्ता उस ने तो बेवफ़ा को मुझे ख़ुद मुआ'फ़ करना पड़ा ख़ुदा ही जाने कि देखा तो क्या हुआ एहसास कि रू-ए-गुल का नज़र से तवाफ़ करना पड़ा रहा न ज़ब्त का यारा तो एक दिन आख़िर 'अलीम' अपने ही दिल में शिगाफ़ करना पड़ा