खुली आँखें हैं पर सोया हुआ हूँ तुम्हारी याद में डूबा हुआ हूँ बदन इक दिन छुआ था तुम ने मेरा उसी दिन से बहुत महका हुआ हूँ मुझे पागल समझती है ये दुनिया तसव्वुर में तिरे खोया हुआ हूँ जहाँ तुम छोड़ कर मुझ को गए थे उसी रस्ते पे मैं बैठा हुआ हूँ ख़ुदा का है करम 'संतोष' मुझ पर हर इक महफ़िल पे मैं छाया हुआ हूँ