कोई दस्तक कोई ठोकर नहीं है तुम्हारे दिल में शायद दर नहीं है उसे इस दश्त का क्या ख़ौफ़ होगा वो अपने जिस्म में हो कर नहीं है मियाँ कुछ रूह डालो शाइरी में अभी मंज़र में पस-मंज़र नहीं है तिरी दस्तार तुझ को ढो रही है तिरे काँधों पे तेरा सर नहीं है इसे लअ'नत समझिए आइनों पर किसी के हाथ में पत्थर नहीं है ये दुनिया आसमाँ में उड़ रही है ये लगती है मगर बे-पर नहीं है