ख़ूँ के प्यासे हैं वहाँ अबरू-ए-ख़मदार जुदा तेज़ करती है छुरी याँ मिज़ा-ए-यार जुदा ऐ सनम बहर-ए-ख़ुदा तू न हो ज़िन्हार जुदा मौत ही है जो मसीहा से हो बीमार जुदा रुख़-ए-रौशन से हों क्या अबरू-ए-ख़मदार जुदा सुब्ह-ए-महशर से न होगी ये शब-ए-तार जुदा तू कहे तो अभी सर काट के रख देते हैं हम किसी हाल में तुझ से नहीं ऐ यार जुदा बाग़-ए-आलम में किसे इश्क़ उन आँखों का नहीं मैं हूँ बीमार जुदा नर्गिस-ए-बीमार जुदा इस से कुछ ख़ौफ़ नहीं इस से है अंदेशा-ए-मर्ग रंजिश-ए-ख़ल्क़ जुदा रंजिश-ए-दिलदार जुदा ख़ाक भी इस से न हो इस से हो महशर बरपा कब्क की चाल जुदा यार की रफ़्तार जुदा अभी हो जाए ज़मीं हम-सर-ए-चर्ख़-ए-अंजुम कफ़्श से तेरे सितारे हों जो दो-चार जुदा एक दिन वस्ल ही हो जाएगा आशिक़ का तिरे मुझ से होता है जो ऐ यार तू हर बार जुदा एक गुल बाग़-ए-जहाँ में नहीं तुझ सा ब-ख़ुदा सब हसीनों से रविश है तिरी ऐ यार जुदा कौन सी शक्ल है अब ज़ीस्त की मेरी 'अकबर' सदमा-ए-हिज्र जुदा ताना-ए-अग़्यार जुदा