किस घर में किस हिजाब में ऐ जाँ निहाँ हो तुम हम राह देखते हैं तुम्हारी कहाँ हो तुम मिटने पर अपने नाज़ न हो किस तरह मुझे मैं हूँ वो बे-निशान कि जिस के निशाँ हो तुम पर्दा-दरी का आप न कीजे गिला अगर हम सीना चाक कर के दिखा दें जहाँ हो तुम दोनों जगह ज़ुहूर बराबर है आप का ज़र्रे में आफ़्ताब में यकसाँ अयाँ हो तुम ख़ाली नहीं है आप के जल्वे से कोई शय दरिया हो और क़तरों के अंदर निहाँ हो तुम हाज़िर है बज़्म-ए-यार में सामान-ए-ऐश सब अब किस का इंतिज़ार है 'अकबर' कहाँ हो तुम