ख़ुशबू गुलों में तारों में ताबिंदगी नहीं तुम बिन किसी भी शय में कोई दिलकशी नहीं जब तुम नहीं हो पास ख़ुशी भी ख़ुशी नहीं जलती है शम्अ' शम्अ' में भी रौशनी नहीं उल्फ़त में भी सुकून की दौलत मिली नहीं जीता तो हूँ ज़रूर मगर ज़िंदगी नहीं वो क्या समझ सकेगा मोहब्बत की अज़्मतें जिस को कभी किसी से मोहब्बत हुई नहीं तुम मुझ को बेवफ़ाई के ता'ने हज़ार दो इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई से तुम भी बरी नहीं जब से लगी है आँख मिरी हुस्न-ए-यार से सच पूछिए तो आँख अभी तक लगी नहीं इस तरह राह-ए-इश्क़ में सज्दे अदा किए मेरी जबीन-ए-शौक़ झुकी फिर उठी नहीं