कोई शम्अ' और कोई परवाना होगा जहाँ में इश्क़ का अफ़्साना होगा जुनून-ए-इश्क़ से है लुत्फ़-ए-हस्ती वो दीवाना है जो फराज़ाना होगा तिरे मस्तों का ऐ कौसर के साक़ी वही पैमाँ वही पैमाना होगा ख़राबात-ए-जहाँ वक़्फ़-ए-फ़ना है मगर बाक़ी तिरा मय-ख़ाना होगा रवाँ हैं कारवाँ जिस की तरफ़ सब यही वो कूचा-ए-जानाना होगा वो दिल ही क्या कि रक़्स-ए-मौज जिस का हरीफ़-ए-जुम्बिश-ए-दरिया न होगा वबाल-ए-दोश है वो सर कि जिस में किसी के इश्क़ का सौदा न होगा जिसे शहद-ओ-शकर की आरज़ू है लब-ए-नोशीं का वो रसिया न होगा मोहब्बत के हैं रंगा-रंग नैरंग कहीं अफ़्सूँ कहीं अफ़्साना होगा परस्तारी है तीनत में बशर की जहाँ का'बा नहीं बुत-ख़ाना होगा पयामी से किसी ने कह दिया है कि 'नाज़िर' से कोई परवाना होगा