ख़ुशी से खेल गए हम क़ज़ा के दामन पर कि हर्फ़ आने न पाए वफ़ा के दामन पर हमारे ख़ून के क़तरे गिरा के दामन पर इक और दाग़ लगाया वफ़ा के दामन पर इलाही ऐसी घटा मय-कदे में छा जाए कि तौबा टूटे मिरी पारसा के दामन पर क़ुदूम-ए-नाज़ का एहसाँ पस-ए-फ़ना भी रहा उड़ाई ख़ाक-ए-लहद भी हवा के दामन पर भला मिटाए से मिटता भी है निशान उस का हज़ार ख़ाक वो डालें वफ़ा के दामन पर न बच सका है कोई और न बच सकेगा कोई है क़ब्ज़ा मौत का शाह-ओ-गदा के दामन पर मिरे करीम ने ऐसा मुझे नवाज़ दिया मचल रही है इजाबत दुआ के दामन पर तिरे करम ने बनाया हमारी बिगड़ी को वगर्ना दाग़ थे लाखों ख़ता के दामन पर 'शफ़ीअ'' जामा-ए-हस्ती भी तार-तार किया जुनूँ ने हाथ को अपने बढ़ा के दामन पर