आप का इंतिज़ार रहता है दिल बहुत बे-क़रार रहता है ये सिफ़त है शराब-ए-उल्फ़त में ज़िंदगी भर ख़ुमार रहता है कुछ ख़बर भी है तेरे कूचे में कोई उमीद-वार रहता है आप के दर पे रात दिन हाज़िर आप का जाँ-निसार रहता है हाल-ए-दिल इश्क़ में नहीं छुपता शक्ल से आश्कार रहता है दिल मिरा क्यों न रश्क-ए-जन्नत हो इस में कोई निगार रहता है ज़िंदगी से तो भर गया है दिल मौत का इंतिज़ार रहता है चार होती हैं उन से जब नज़रें दिल पे कब इख़्तियार रहता है जिस को पास-ए-ज़बाँ नहीं होता सब की नज़रों में ख़ार रहता है दिल कहाँ फेंक दूँ किसे दे दूँ ये बहुत बे-क़रार रहता है याद है वो निगाह-ए-मस्त अब तक बे-पिए ही ख़ुमार रहता है फिर किसी के फ़िराक़ में 'हाजिर' रात दिन अश्क-बार रहता है