ख़ुश्क दरिया में इज़्तिराब आए सारे साहिल ही ज़ेर-ए-आब आए उन को समझा गुलाब सहरा में मेरी राहों में वो सराब आए उन के जाने से शोर-ए-तन्हाई उन के आने से इंक़लाब आए बोझ पलकों पे रख लिया उन का जो कि ख़्वाबों में बे-हिसाब आए लफ़्ज़-ओ-मा'नी का तोड़ दे रिश्ता पेश फिर भी वही किताब आए मेरे ग़म से हवा भी आलूदा यख़-ज़दा जाए शो'ला-ताब आए सादा पानी शराब लगता है जब किसी पर 'ज़फ़र' शबाब आए