ख़ुश्क ज़मीं हूँ बरखा हो तुम मैं प्यासा हूँ दरिया हो तुम भर दो मेरे ख़ाली-पन को मैं साग़र हूँ मीना हो तुम सारी दुनिया से कह दूँगा मेरी सारी दुनिया हो तुम सुन कर जिस को वज्द हो तारी बस ऐसा ही नग़्मा हो तुम मिल कर तुम से यूँ लगता है धूप में जैसे साया हो तुम कहना पड़ा ये देख के तुम को क़ुदरत का शह-पारा हो तुम तुम को 'शकील' अब और कहे क्या बस इक चाँद का टुकड़ा हो तुम