ख़्वाब के पास हैं ता'बीर से वाबस्ता हैं फिर भी ये फ़ैसले तक़दीर से वाबस्ता हैं इतना देखा है उसे हम ने कि अब लगता है सारे चेहरे उसी तस्वीर से वाबस्ता हैं हम को मालूम है मिलने से रहे उन के जवाब जो सवाल आप की तहरीर से वाबस्ता हैं उम्र-भर हम को इसे पहन के चलना होगा हम कि इस दर्द की ज़ंजीर से वाबस्ता हैं उस को हर वक़्त दिखानी है नवाबी अपनी और हम मीर-तक़ी-'मीर' से वाबस्ता हैं ये अजब दौर है इस दौर में दिखती ही नहीं ऐसी बुनियादें जो ता'मीर से वाबस्ता हैं जो सदा फूल खिलाता चले सब रस्तों में हम भी इक ऐसे ही रह-गीर से वाबस्ता हैं