ख़्वाब सरीखा छुटपन सावन प्याज़ की रोटी देसी घी अम्मा के सिल-बट्टे वाली धनिए लहसन की चटनी कच्ची मिट्टी के घर जैसे बच्चों को सहलाते थे गुबरी वाले दालानों पर चोट कभी न लगती थी दस-बारह छेदों से पानी फ़वारे सा पड़ता था घर में टूटी तिल्ली वाली एक पुरानी सी छतरी साइकल थोड़ी चौबीस इंची ऊँट चलाया करते थे वो भी तीन चरण में भय्या क़ैंची डंडा फिर गद्दी नेकर वाली उम्रों तक हम ख़ाक समझते थे जूठन तोते के कतरे अमरूदों को खाने की होड़ रही घर की खपड़ैलों के अंदर टप-टप मेघ बरसते थे अम्मा बाबू टाँकते रहते टीन में साबुन की टिक्की आँगन के आग़ोश में लेटे शब-भर नाम बिगाड़े थे तारों को इश्टार कहे थे और 'क़मर' को मामा जी