बिना मतलब की वहशत हो रही है कोई हालत में हालत हो रही है ग़मों का इस क़दर आदी हुआ हूँ कि अब ख़ुशियों से दहशत हो रही है ज़ेहन पे धूल जमती जा रही है अदाकारी मुसल्लत हो रही है तुझे वहशत में गाली बक रहा हूँ फिर इस हालत पे हैरत हो रही है तिरे एहसास पागल हो गए हैं सराबों से शिकायत हो रही है गुज़ारी जा रही है ज़िंदगी यूँ किसी बेवा की इद्दत हो रही है निगाह-ए-ख़ुश्क से रोना पड़ेगा यहाँ पानी की क़िल्लत हो रही है ख़ुशी वाली रगें साकिन हैं कब से दुखों वाली में हरकत हो रही है भले शाइ'र सुख़न न कर सकेंगे ग़लीज़-ओ-बद निज़ामत हो रही है मिरे अंदर जो इक पागल है 'शारिक़' उसी की है जो हिम्मत हो रही है