ख़्वाब शर्मिंदा-ए-ताबीर नहीं हो सकता दिल मुकम्मल कभी तस्ख़ीर नहीं हो सकता आज रूठे हुए साजन ने बुलाया है मुझे आज तो कुछ भी इनाँ-गीर नहीं हो सकता हो न हो ये कोई अपना ही खुला है मुझ पर मेरे दुश्मन का तो ये तीर नहीं हो सकता बाँध ले दोस्त गिरह में ये मिरा फ़रमाया कुछ भी कर ले तू मगर 'मीर' नहीं हो सकता कर्बला के लिए मख़्सूस है बस एक ही शख़्स दूसरा कोई भी 'शब्बीर' नहीं हो सकता