ख़्वाबों में छुपी हूँ न किसी प्यार में गुम हूँ औरत हूँ मैं अज्दाद की दस्तार में गुम हूँ चुनवाई गई थी कभी चाहत की ख़ता में आ देख अभी तक इसी दीवार में गुम हूँ लिक्खे ही न जाएँ किसी शाइ'र से कभी भी इक उम्र से मैं ऐसे ही अशआ'र में गुम हूँ 'सस्सी' भी नहीं 'हीर' के जैसी भी नहीं हूँ मैं अपनी कहानी के ही किरदार में गुम हूँ जंगल है मिरे दिल में तिरे हिज्र का हर-सू मुद्दत से 'रिशा' इस के मैं अश्जार में गुम हूँ