करते हैं सितम रोज़ वो मरने नहीं देते वो मेरे किसी ज़ख़्म को भरने नहीं देते ये सोच के दिल में नहीं कीना को जगह दी नफ़रत के सबब दिल को सँवरने नहीं देते चेहरों पे बनावट का लिए फिरते हैं ग़ाज़ा बस ज़ात को अपनी ये निखरने नहीं देते हालात सुधर जाएँ मिरे करती हूँ कोशिश क़िस्मत के सितारे ही सुधरने नहीं देते ज़ालिम हैं ज़माने के सभी लोग 'रिशा' जी ये हक़ की तरफ़-दारी भी करने नहीं देते