क़त्ल-ए-आशिक़ किसी मा'शूक़ से कुछ दूर न था पर तिरे अहद से आगे तो ये दस्तूर न था रात मज्लिस में तिरे हुस्न के शो'ले के हुज़ूर शम्अ के मुँह पे जो देखा तो कहीं नूर न था ज़िक्र मेरा ही वो करता था सरीहन लेकिन मैं ने पूछा तो कहा ख़ैर ये मज़कूर न था बावजूदे कि पर-ओ-बाल न थे आदम के वहाँ पहुँचा कि फ़रिश्ते का भी मक़्दूर न था परवरिश ग़म की तिरे याँ तईं तो की देखा कोई भी दाग़ था सीने में कि नासूर न था मोहतसिब आज तो मय-ख़ाने में तेरे हाथों दिल न था कोई कि शीशे की तरह चूर न था 'दर्द' के मिलने से ऐ यार बुरा क्यूँ माना उस को कुछ और सिवा दीद के मंज़ूर न था