मुझ को तुझ से जो कुछ मोहब्बत है ये मोहब्बत नहीं है आफ़त है लोग कहते हैं आशिक़ी जिस को मैं जो देखा बड़ी मुसीबत है बंद अहकाम-ए-अक़्ल में रहना ये भी इक नौअ' की हिमाक़त है एक ईमान है बिसात अपनी न इबादत न कुछ रियाज़त है आ फँसूँ मैं बुतों के दाम में यूँ 'दर्द' ये भी ख़ुदा की क़ुदरत है