जो मो'तरिफ़ थे मिरे शजरा-ए-नसब के सब वो लोग हो गए रुख़्सत यहाँ से कब के सब फ़ज़ा-ए-निस्बत-ओ-क़ुर्बत है गर्द गर्द मगर समझ रहे हैं मिरे दिल का हाल सब के सब वो लोग जिन की हिमायत में ख़ुद से लड़ता रहा वो लोग हो गए मेरे ख़िलाफ़ अब के सब रविश में औरों के अस्लाफ़ की रविश न रही सो क़िस्से लिक्खे गए मेरे ही नसब के सब मैं दूसरों की तलब में बहाल होता रहा ग़ुलाम होते रहे अपनी ही तलब के सब वो हर्फ़ जिस से उठा है मिरी नवा का ख़मीर हैं मुंतज़िर उसी इक हर्फ़-ए-ज़ेर-ए-लब के सब उसे ख़बर थी कि मैं एक शब का मेहमाँ हूँ सौ बंद वा किए उस ने क़बा-ए-शब के सब किसी रिहाई का अहवाल जानने के लिए सिरहाने बैठे हैं ख़ामोश जाँ-ब-लब के सब चराग़ और क़लम आँख और हैरानी ये इस्तिआरे हैं गोया मिरी तलब के सब ये रंजिशें हैं 'रज़ी' और ही तअ'ल्लुक़ से ये सिलसिले हैं किसी और ही तरब के सब