हिना के क़ौस-ए-क़ुज़ह के शजर के क्या क्या रंग वो आँख लाई है ज़ंजीर कर के क्या क्या रंग तुझे ख़बर नहीं पहलू-ए-मौसम-ए-गुल से छलक रहे हैं तिरी चश्म-ए-तर के क्या क्या रंग उतर रहे हैं मिरी हैरतों के आँगन में फ़राज़-ए-शब से तुलू-ए-सहर के क्या क्या रंग सर-ए-विसाल तिरे कैफ़-ओ-कम से ज़ाहिर हैं मिरी नज़र पे कफ़-ए-कूज़ा-गर के क्या क्या रंग फ़ज़ा ख़मोश हुई फिर भी रक़्स करते हैं नवाह-ए-जाँ में किसी की नज़र के क्या क्या रंग सफ़र में तर्क-ए-मसाफ़त पे दिल हुआ माइल मसाफ़तों में खुले अपने घर के क्या क्या रंग गुमाँ बहार का होता है अब ख़िज़ाँ पे 'रज़ी' चुरा लिए हैं ख़िज़ाँ ने शजर के क्या क्या रंग