ज़ुल्फ़-ए-दौराँ है कहाँ साया-फ़गन मेरे बा'द मुंतज़िर देर से हैं दार-ओ-रसन मेरे बा'द किस को दिल-बस्तगी-ए-ग़म का सलीक़ा सौंपूँ सोचता हूँ कि न मर जाए ये फ़न मेरे बा'द मैं ज़माने से उठा रस्म-ए-वफ़ा की सूरत फिरना उभरी किसी माथे पे शिकन मेरे बा'द मेरे दम तक तो ज़र-ए-गुल की भी क़ीमत न उठी ख़ाक के मोल गई अर्ज़-ए-चमन मेरे बा'द होश-मंदी की सज़ा दे न किसी को यारब दम-ब-ख़ुद पहले से हैं अहल-ए-वतन मेरे बा'द बज़्म-ए-हस्ती है कि इक बोलता सन्नाटा है आ गई वक़्त की साँसों में घुटन मेरे बा'द रौशनी-साज़-ज़माना हूँ तो ये आलम है देखिए क्या हो ज़माने का चलन मेरे बा'द मिल ही जाएगा कोई ज़र्फ़-ओ-नज़र का मारा दिल-शिकस्ता न रहें रंज-ओ-मेहन मेरे बा'द वक़्त ने ज़ेहनियतें कितनी बदल डाली हैं बिजलियाँ तक हैं हवा-ख़्वाह-ए-चमन मेरे बा'द मुझ पे हँसता है ज़माना तो कोई बात नहीं रंग लाएगी मिरे दिल की जलन मेरे बा'द मौत बर-हक़ है मगर 'शौक़' ये मंज़ूर नहीं उन के चेहरे पे हो सदमे की थकन मेरे बा'द