दैर-ओ-हरम से काम न कू-ए-बुताँ से है वाबस्ता ज़िंदगी तिरे दर्द-ए-निहाँ से है आग़ाज़-ए-दर्द-ए-इश्क़ न पूछो कहाँ से है ये बात मावरा ग़म-ए-शरह-ओ-बयाँ से है कितने मज़े से अहल-ए-फ़ना की गुज़र गई जो क़ैद है तअ'य्युन नाम-ओ-निशाँ से है कब से हूँ ग़म-नसीब-ए-मोहब्बत न पूछिए ये देखिए कि सिलसिला-ए-ग़म कहाँ से है वाक़िफ़ मिज़ाज-ए-गुल से न रंग-ए-बहार से कहने को तो लगाव गुल-ओ-गुलिस्ताँ से है दुनिया है ख़ुद फ़रेब उमीद इस से क्या रखें कुछ आस है तो सिर्फ़ तिरे आस्ताँ से है जो आश्ना हो जल्वा-ए-सद-रंग से तिरे क्या काम उस को फ़र्क़ बहार-ओ-ख़िज़ाँ से है गुलचीं क़फ़स बहार ख़िज़ाँ बर्क़ आँधियाँ कितनों का नाम एक मेरे गुलिस्ताँ से है जिस पर हक़ीक़त सफ़र-ए-ज़िंदगी खुली वो कारवाँ में रह के अलग कारवाँ से है सो आशियाँ चमन में रहें तो रहा करें जो इख़्तिलाफ़ है वो मिरे आशियाँ से है रूदाद-ए-ज़िंदगी भी है अपनी अजीब 'शौक़' हर शख़्स बद-गुमान मिरी दास्ताँ से है