कि जिन से लहजा बदल के तू बोलता है वो लोग मलाल उस का सहेंगे मगर कहेंगे नहीं रिआयतों में लिखेंगे हमेश नाम तिरा ब-नाम-ए-जुर्म-ए-वफ़ा तोहमतें धरेंगे नहीं हमारा वक़्त तो हँस कर गुज़रने वाला था मगर ये रंज तो अब राह से हटेंगे नहीं ऐ इश्क़ तेरे मिज़ाजों की ख़ैर हो अब के दिए हैं ज़ख़्म जो तू ने कभी भरेंगे नहीं वो एक पल कि जिसे हम ने ज़िंदगी लिक्खा अब और उस की अज़िय्यत में हम जिएँगे नहीं सो फिर ये दिल ही हमारा हमारे काम आया कुछ ऐसे फूल खिले जो कभी खिलेंगे नहीं