की ख़ूब वफ़ा हम से ली ख़ूब ख़बर तू ने दिन-रात सितम ढाए ऐ बानी-ए-शर तू ने क्या हम ने बिगाड़ा है क्यूँ हम को सताता है क्यूँ ज़ुल्म पर ऐ ज़ालिम बाँधी है कमर तू ने ऐ मौत तअ'ज्जुब है जो ज़ीनत-ए-गुलशन है काटे वो शजर तू ने तोड़े वो समर तू ने अल्लाह के बंदों पर ऐ बुत ये सितम तेरे रक्खा न क़यामत का कुछ ख़ौफ़-ओ-ख़तर तू ने इस तेरी बनावट से है साफ़ हमें ज़ाहिर आशिक़ के मिटाने पर बाँधी है कमर तू ने बे-कार हैं ये नाले बे-सूद हैं ये आहें खींचा न अगर उन को ऐ जज़्ब-ए-असर तू ने दिल मेरा जलाया क्या अफ़्सोस हज़ार अफ़्सोस बर्बाद किया ऐ बुत अल्लाह का घर तू ने जो बा'द-ए-फ़ना तेरे कुछ काम नहीं आया क्यूँ जम्अ' किया मुनइ'म वो माल वो ज़र तू ने हम दर्द-ए-मोहब्बत से तड़पा ही किए लेकिन अल्लाह रे बेदर्दी देखा न इधर तू ने 'साबिर' ये हिमाक़त है है ये तिरी नादानी अपने को जो समझा है हर एक से दर तू ने मैं सब्र का ख़ूगर हूँ है नाम मिरा 'साबिर' जाबिर है तो पाया है पत्थर का जिगर तू ने