रह-ए-जुनूँ में कभी कामयाब हम भी थे कभी हवाला-ए-दश्त-ओ-सराब हम भी थे तिरी निगाह ने गौहर बना दिया वर्ना हिसार-ए-मौज में मिस्ल-ए-हबाब हम भी थे जुनूँ ने हम को भी बख़्शी थी शान-ए-दर-ब-दरी जहान-ए-फ़िक्र में ख़ाना-ख़राब हम भी थे हमारे ज़र्फ़ को रुत्बों से तोलने वालो इसी दयार में इज़्ज़त-मआब हम भी थे अँधेरे हो गए मंसूब हम से अब वर्ना इस आसमाँ में कभी आफ़्ताब हम भी थे