कीधर की ख़ुशी कहाँ की शादी जब दिल से हवस ही सब उड़ा दी ता हाथ लगे न खोज दिल का अय्यार नीं ज़ुल्फ़ ही उठा दी पल मारते ख़ाक में मिलाया टुक हँस के जिधर नज़र मिला दी यारब सिवा लिक़ा-ए-वजहक ला-मक़सूदी व ला-मुरादी देते हो किसे ये बद-दुआएँ क्या प्यारे 'असर' नीं फिर दुआ दी