किन दुश्मनों का तीर बनाया गया हूँ मैं अपने ही जिस्म-ओ-जाँ में उतारा गया हूँ मैं जो सब से कट चुका हूँ तो हैरत की बात क्या अब अपने साथ भी कहाँ पाया गया हूँ मैं इक उम्र तक तो मैं भी ज़माने के साथ था कुछ बात है जो लौट के घर आ गया हूँ मैं वो माह-वश सुना है कि गुज़रेगा इस तरफ़ इक कहकशाँ सी राह में बिखरा गया हूँ मैं ख़ुद अपने-आप से भी कहाँ था मैं मुतमइन अब जो ज़माने तुझ को भी रास आ गया हूँ मैं इक सानेहा सा दफ़्न हूँ लेकिन कभी कभी सदियों की क़ब्र से भी उठाया गया हूँ मैं अब किस तरह मैं अपने लबों को समेट लूँ किन आँधियों की ज़द पे चलाया गया हूँ मैं