किस ज़बाँ से शिकवा-ए-जौर-ए-सितम-आरा करें जिस को अच्छा कह चुके उस की बुराई क्या करें उन से जब पूछा गया बिस्मिल तुम्हारे क्या करें हँस के बोले ज़ख़्म-ए-दिल देखा करें रोया करें हो के ग़श जल्वे से नक़्ल-ए-हज़रत-ए-मूसा करें आप अगर पर्दा उठा भी दें तो हम पर्दा करें हुस्न से वादा-ख़िलाफ़ी इश्क़ से तौबा करें दीन के भी हों बुरे दुनिया को भी रुस्वा करें कम से कम ऐसी तो कुछ तदबीर कर ऐ जज़्ब-ए-इश्क़ वो हमें देखें न देखें हम उन्हें देखा करें इक ज़माना हो रहा है इश्क़ में हम से ख़िलाफ़ किस के किस के दिल में दिल डालें इलाही क्या करें हर तरफ़ ज़िंदाँ की दीवारों पे है तस्वीर-ए-दोस्त अब जिधर चाहें असीरान-ए-सितम सज्दा करें वाह क्या अच्छा तक़ाज़ा वाह क्या इंसाफ़ है दर्द तो दें आप और तासीर हम पैदा करें हज़रत-ए-'मंज़र' नहीं हैं वाइज़ो इस रंग के आज मय-ख़्वारी करें कल बैठ कर तौबा करें