कुछ इस अंदाज़ से माँगा गया दिल ख़ुशामद कर के दे देना पड़ा दिल अरे दिल ऐ मेरे दिल बे-वफ़ा दिल तो क्या माँगूँ ख़ुदा से दूसरा दिल गिले शिकवों की कर लीजे सफ़ाई बुरा क्यूँ कीजिए अच्छा भला दिल हुए ख़ामोश तो रुलवा के छोड़ा अगर की बात तो बर्मा दिया दिल मुझे तो बख़्शिए और जीने दीजे मुबारक आप ही को आप का दिल वो मक़्तल ही सही महफ़िल किसी की मगर कब मानता है मंचला दिल न कहने देगी ये चश्म-ए-मुरव्वत न पूछे हम से कोई क्या हुआ दिल फिर अब काहे की है साहिब-सलामत तुम्हें दरकार था दिल दे दिया दिल बदों से भी नहीं करते बुराई हम ऐसा सब को दे 'मंज़र' ख़ुदा दिल