किस ज़िंदगी के मोड़ पे लाया गया मुझे मैं हँस रही थी और रुलाया गया मुझे पहले तो तीरा-बख़्त मुसलसल कहा गया फिर तख़्त-ए-ज़ौ-फ़िशाँ पे बिठाया गया मुझे पहले तो इंतिख़ाब हुआ नाम-ए-हुस्न पर फिर इस्म-ए-इश्क़ ले के बनाया गया मुझे मुझ से मिरे ख़याल की तन्हाई छिन गई महफ़िल में किस सदा से बुलाया गया मुझे अग़्यार से वो करता रहा मुस्कुरा के बात इस आग की हदों में जलाया गया मुझे रहबर ने इस तरह से दिया है मुझे फ़रेब मंज़िल से हट के रस्ता दिखाया गया मुझे पहले मिरी वफ़ा को मोअ'त्तर किया गया फिर गुलशन-ए-हया से सजाया गया मुझे इक शख़्स आ गया है नई रौशनी के साथ ये भी ख़त-ए-नफ़स से बताया गया मुझे वो कौन आसमान-ए-तसव्वुर है 'हादिया' मेरी ज़मीं से जिस में बसाया गया मुझे