किस क़दर वज़्न है ख़ताओं में ज़िक्र रहता है पारसाओं में वापसी पर उतर गया चेहरा जा के बैठा था हम-नवाओं में राज़ की बात है दुआ न करो याद रखना हमें दुआओं में ढूँड शायद मिले पयाम-ए-ज़मीर बूढ़े बरगद की इन चट्टानों में अपनी तारीफ़ करने बैठा था बात उड़ा दी गई हवाओं में चेहरे बदले हुए हैं 'शमर'-ओ-'यज़ीद' अहद-ए-हाज़िर की कर्बलाओं में सोचते हो 'वक़ार' क्या तुम भी नाम आ जाए पारसाओं में