कुछ ऐसे तेरे बदन का यहाँ निशाँ खुलेगा कि जिस तरह से समुंदर में बादबाँ खुलेगा ये सोचते ही मिरे हाथ-पाँव फूल गए मिरा निशान कहानी में कब कहाँ खुलेगा गुज़रते वक़्त किसी को ख़बर नहीं थी यहाँ कि एक दम से दिलों पर ये ख़ाक-दाँ खुलेगा मैं दाएँ-बाएँ किसी और सम्त भी देखूँ किसे ख़बर कि कहाँ से ये दरमियाँ खुलेगा यहाँ ये कौन तुझे याद रक्खेगा ऐ 'अज़ीज़' कि तेरे बा'द ही ये ज़िक्र-ए-दोस्ताँ खुलेगा