किस क़यामत का है बाज़ार तिरे कूचे में बिकने आते हैं ख़रीदार तिरे कूचे में तो वो ईसा है कि ऐ नब्ज़-शनास-ए-कौनैन इब्न-ए-मरयम भी है बीमार तिरे कूचे में इज़्न-ए-दीदार तो है आम मगर क्या कहिए चश्म-ए-बीना भी है बेकार तिरे कूचे में जिस ने देखा हो नज़र भर के तिरा हुस्न-ए-तमाम कोई ऐसा भी है ऐ यार तिरे कूचे में 'आरज़ू' सा कभी देखा है कोई काफ़िर-ए-इश्क़ यूँ तो हैं सैंकड़ों दीं-दार तिरे कूचे में