किस को सुनाऊँ हाल-ए-ग़म कोई ग़म-आश्ना नहीं ऐसा मिला है दर्द-ए-दिल जिस की कोई दवा नहीं मेरी नमाज़-ए-इश्क़ को शैख़ समझ सकेगा क्या उस ने दर-ए-हबीब पे सज्दा कभी किया नहीं मुझ को ख़ुदा से आश्ना कोई भला करेगा क्या मैं तो सनम-परस्त हूँ मेरा कोई ख़ुदा नहीं कैसे अदा करूँ नमाज़ कैसे झुकाऊँ अपना सर सेहन-ए-हरम में शैख़-जी यार का नक़्श-ए-पा नहीं क्या हैं उसूल-ए-बंदगी अहल-ए-जुनूँ को क्या ख़बर सज्दा रवा कहाँ पे है सज्दा कहाँ रवा नहीं मुझ से शुरू-ए-इश्क़ में मिल के जो तुम बिछड़ गए बात है ये नसीब की तुम से कोई गिला नहीं मुझ को रह-ए-हयात में लोग बहुत मिले मगर उन से मिला दे जो मुझे ऐसा कोई मिला नहीं अपना बना के ऐ सनम तुम ने जो आँख फेर ली ऐसा बुझा चराग़-ए-दिल फिर ये कभी जला नहीं इश्क़ की शान मर्हबा इश्क़ है सुन्नत-ए-ख़ुदा इश्क़ में जो भी मिट गया उस को कभी 'फ़ना' नहीं