किस को सुनाऊँ हाल दिल-ए-बे-क़रार का मिलता नहीं है कोई बशर ए'तिबार का कैसे गुज़र वहाँ हो सुकून-ओ-क़रार का झगड़ा पड़ा हुआ हो जहाँ नूर-ओ-नार का नक़्द-ए-हयात उन की है बे-मसरफ़-ओ-फ़ुज़ूल जिन को ख़याल ही नहीं अपने वक़ार का उजड़ा है जब से मेरा नशेमन हूँ मुतमइन ख़तरा ही ख़त्म हो गया बर्क़-ओ-शरार का है दिन की रौशनी तो कभी रात का समाँ जारी है सिलसिला यूँही लैल-ओ-नहार का तौसीफ़ उस की मेरी ज़बाँ से हो क्या बयाँ यकजा हुआ है हुस्न उरूस-ए-बहार का बे-बाल-ओ-पर है फिर भी बनाया है आशियाँ मक़्दूर और क्या था ग़रीब-उद-दयार का जान-ए-बहार बन के तसव्वुर में आ गए जब भी छिड़ा है तज़्किरा फ़स्ल-ए-बहार का तख़लीक़-ए-काएनात के अस्बाब कुछ भी हों 'ख़ावर' ये एक शग़्ल है परवरदिगार का