जिस को देखो जिस को परखो लगता है बेगाना सा माज़ी को सब भूल चुके हैं माज़ी है अफ़्साना सा नाज़ुक गर्दन पतली कमर थी चाल थी उस की मतवाली आँखें नर्गिस को शरमाएँ मुखड़ा मा'सूमाना सा ज़ुल्फ़ें जैसे काली घटा हो अबरू उस के ख़ंजर से फूल की पत्ती लब थे उस के क़द्द-ओ-क़ामत मियाना सा दंदाँ मोती की लड़ियाँ थीं ख़ाल था गाल पे हाए ग़ज़ब बातें उस की मीठी मीठी लहजा था मस्ताना सा सब कुछ तो मैं भूल चुका हूँ लेकिन ये कैसे भूलूँ शम्अ की सूरत वो था हमदम और मैं था परवाना सा कैसे खिलें उम्मीद की कलियाँ कैसे वो रुत आए फिर कैसे फलेगा नख़्ल-ए-तमन्ना दिल हो जब वीराना सा कितनी तस्वीरें हैं कंदा दिल में कि बस अल्लाह अल्लाह कुछ कुछ काबा सा लगता है कुछ कुछ है बुत-ख़ाना सा ग़ैर तो ग़ैर है अव्वल-ओ-आख़िर ग़ैर का क्या शिकवा कीजे मुझ को तो इस सोच ने मारा दिल क्यों है बेगाना सा उलझे उलझे उस के गेसू चेहरे पर वहशत तारी ऐसा लगता है अब 'ख़ावर' जैसे हो दीवाना सा