किस लिए जश्न-ए-अना महफ़िल-ए-इदराक में है मेरी तारीख़ मिरे दामन-ए-सद-चाक में है फिर उठा जोश-ए-जुनूँ जज़्बा-ए-मंसूर लिए फिर अनल-हक़ की सदा कूचा-ए-सफ़्फ़ाक में है मौत अंजाम है माहौल है ग़फ़लत का यहाँ वक़्त हर लम्हा शिकारी की तरह ताक में है फ़त्ह-ए-तक़दीर का ए'जाज़ समझने वाले फ़त्ह पोशीदा तिरी जुरअत-ए-बे-बाक में है