वो हसरत-ए-बहार न तूफ़ान-ए-ज़िंदगी आता है फिर रुलाने को अब्र-ए-बहार क्यूँ आलाम-ओ-ग़म की तुंद हवादिस के वास्ते इतना लतीफ़ दिल मिरे परवरदिगार क्यूँ जब ज़िंदगी का मौत से रिश्ता है मुंसलिक फिर हम-नशीं है ख़तरा-ए-लैल-ओ-नहार क्यूँ जब रब्त-ओ-ज़ब्त हुस्न-ए-मोहब्बत नहीं रहा है बार-ए-दोश हस्ती-ए-ना-पाएदार क्यूँ रोना मुझे ख़िज़ाँ का नहीं कुछ मगर 'शमीम' इस का गिला है आई चमन में बहार क्यूँ