किस ने कहा कि मुझ को ये दुनिया नहीं पसंद बस सामने का थोड़ा सा हिस्सा नहीं पसंद बरसों से इस के साथ गुज़र कर रहे हैं हम हर-चंद ज़िंदगी का रवय्या नहीं पसंद सूरज तुलूअ' होते ही दर बंद हो गए ये कैसे लोग हैं कि सवेरा नहीं पसंद ख़्वाहिश तो है मुझे भी कि मंज़िल मिले मगर यूँ दूसरों की राह पे चलना नहीं पसंद मैं जानता हूँ जान ही ले लेगी तिश्नगी लेकिन मुझे ख़ुशामद-ए-दरिया नहीं पसंद तारीफ़ कर रहे थे सभी ज़ीस्त की 'सलीम' मैं ने भी कुछ क़रीब से देखा नहीं पसंद