किस क़दर ध्यान है ऐ काकुल-ए-पेचाँ तेरा अपने साये से उलझता है परेशान तेरा अपनी हसरत पे लहू रोए हर इक ज़ख़्म-ए-जिगर गिर पड़ा हाथ से क़ातिल जो नमकदाँ तेरा क्या कहूँ है मिरे सहरा की जो वुसअ'त ऐ क़ैस न मिले उस में जो खो जाए बयाबाँ तेरा हौसला निकले मिरी वहशत-ए-दिल का क्यूँकर दायरा तंग है ऐ आलम-ए-इम्काँ तेरा ले गया उस की गली तक न बहा कर लाशा चश्म-ए-तर काम कुछ आया मिरे तूफ़ाँ तेरा आज-कल चलती है दुनिया में क़यामत की हवा गुल न हो जाए चराग़ ऐ मह-ए-ताबाँ तेरा ख़ैर हो बू-ए-रक़ाबत मुझे आई तुझ से चाक किस के लिए ऐ गुल है गरेबाँ तेरा किस तरफ़ ढूँढता फिरता है तो ऐ तीर-अफ़्गन दिल में 'अकबर' ने छुपा रक्खा है पैकाँ तेरा