किस को मालूम हुई इज़्ज़त-ओ-शान-ए-बुलबुल कौन है गुल के सिवा मर्तबा-दान-ए-बुलबुल गोश-ए-गुल ने न सुना शोर-ए-फ़ुग़ान-ए-बुलबुल ऐ सबा क्या हुई तासीर-ए-ज़बान-ए-बुलबुल आई क्या फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ उड़ गए मुर्ग़ान-ए-चमन मिट गया सूरत-ए-गुल नाम-ओ-निशान-ए-बुलबुल दीद-ए-लैला के लिए शर्त है चश्म-ए-मजनूँ सिफ़त-ए-गुल को है दरकार ज़बान-ए-बुलबुल हो गया बरहम इसी से तो मिज़ाज उस गुल का जा-ब-जा था मिरे दीवाँ में बयान-ए-बुलबुल गाते हैं मेरी ग़ज़ल मुर्ग़-ए-ख़ुश-इलहान-ए-चमन उन को आता है मज़ा है ये ज़बान-ए-बुलबुल शब को आता है जो महफ़िल में वो गुल ऐ 'अकबर' हम को परवानों पे होता है गुमान-ए-बुलबुल