किस तरफ़ हाए मिरे दिल मिरा लश्कर छूटा मिरा कुम्बा मिरा ख़ेमा मिरा घर भर छूटा मैं खड़ा घूरता रहता हूँ ख़ला में क्या क्या कोई बतलाए मुझे कैसे वो मंज़र छूटा लिख लिया करता था जो दिल पे गुज़रती थी मगर ऐसी कुछ गुज़री क़लम हाथ से लग कर छूटा बात करते हैं मोहब्बत की जहाँ बस्ते हैं लोग मैं कहाँ रहता हूँ किस देस मिरा घर छूटा सानेहा एक नहीं सैंकड़ों दफ़्तर में 'ज़हीर' ज़िक्र उस का है जहाँ दिल सा मुसाफ़िर छूटा