किस तरफ़ से आ रही हैं दर्द की पुरवाइयाँ आग सी देने लगी हैं भीगती अंगनाइयाँ मैं कहाँ था जब फ़रिश्तों ने ख़ुशी इंसाँ को दी क्यूँ मिरे हिस्से में आएँ सिर्फ़ अश्क-आराइयाँ ये शबाब-ओ-हुस्न तेरा और ये नाज़-ओ-अदा टूटती हैं दोनों हाथों से तिरी अंगड़ाइयाँ मैं कहाँ जा कर छुपूँ ऐ गर्दिश-ए-दौराँ बता ढूँड लेती हैं मुझे हर-जा मिरी रुस्वाइयाँ इक शिकस्ता साज़ है और इक सदा-ए-दर्द-ए-दिल हम हैं तुम हो बेकसी है ग़म है और तन्हाइयाँ मुझ को चारा दो दवा मत दे मैं जी कर क्या करूँ ये दुआ कर मुझ को डस लें मौत की परछाइयाँ हम ने क्या सोचा था और 'सीमाब' ये क्या हो गया बजते बजते रुक गईं क्यूँ सब की सब शहनाइयाँ