किस तरह छोड़ दूँ ऐ यार मैं चाहत तेरी मेरे ईमान का हासिल है मोहब्बत तेरी जाने क्या बात है जल्वों में तिरे जान-ए-जहाँ याद आता है ख़ुदा देख के सूरत तेरी अब निगाहों में जचेगा न कोई रंग-ओ-जमाल मेरी आँखों को पसंद आ गई रंगत तेरी अपनी क़िस्मत पे फ़रिश्तों की तरह नाज़ करूँ मुझ पे हो जाए अगर चश्म-ए-इनायत तेरी हरम-ओ-दैर के जल्वों से मुझे क्या मतलब शीशा-ए-दिल में उतर आई है सूरत तेरी आस्ताने से तिरे सर न उठेगा मेरा मुद्दआ' बन के मिली है मुझे निस्बत तेरी मैं 'फ़ना' हो के पहुँच जाऊँगा तेरे दर तक राह दिखलाने लगी मुझ को मोहब्बत तेरी