किसे अपना कहें हम कौन है आख़िर यहाँ अपना न अहल-ए-कारवाँ अपने न मीर-ए-कारवाँ अपना सुनाएँगे उसी को क़िस्सा-ए-दर्द-ए-निहाँ अपना वही है मेहरबाँ अपना वही है राज़-दाँ अपना न अब लुटने का अंदेशा न कुछ परवाह मंज़िल की कि हम तेरे हवाले कर चुके हैं कारवाँ अपना बहार-ए-जावेदाँ उस सर-ज़मीं का तौफ़ करती है तिरे दीवाने डेरा डाल देते हैं जहाँ अपना तमन्ना है तुम्हारे पाँव के नीचे रहूँ हर दम बना लो तुम कभी मुझ को भी संग-ए-आस्ताँ अपना हम अपनी जान दे देंगे गुलिस्ताँ को न छोड़ेंगे हमें तो जान से प्यारा है 'नय्यर' गुल्सिताँ अपना