किसी से उन की जफ़ाओं का तज़्किरा न करो हज़ार ज़ुल्म वो ढाएँ मगर गिला न करो हर एक लम्हा गुज़रता है इक सदी जैसा तअ'ल्लुक़ात बढ़ा कर जुदा रहा न करो मिरी हयात को निस्बत बस इक तुम्हीं से है तुम अपने साथ ही रक्खो मुझे जुदा न करो तबाही तुम ने तो ख़ुद मोल ली है अहल-ए-चमन किसी से अपनी तबाही का अब गिला न करो वो सब के दिल की तलब से हैं बा-ख़बर 'नय्यर' तुम उन की बज़्म में इज़हार-ए-मुद्दआ न करो