किसे नादान समझाने गए हैं 'वसी' साहिब तो मयख़ाने गए हैं जो पत्थर है यहाँ का सुर्ख़-रू है इन्हीं राहों से दीवाने गए हैं वफ़ा-केशी रिवायत बन चुकी है वो अब किस पर सितम ढाने गए हैं समुंदर पर रहा जिन का तसर्रुफ़ वही प्यासों को बहलाने गए हैं 'वसी' पहुँचा न बज़्म-ए-गुल-रुख़ाँ तक सुना है उस के अफ़्साने गए हैं