किसे नदीम किसे हम-नवा कहें अपना बिठा के पास किसे मुद्दआ' कहें अपना रह-ए-हयात में अपने परायों से हट कर कोई मिले तो उसे माजरा कहें अपना अदा-ए-पर्दा-नशीनी की शान कहती है वो बुत है तो भी उसे हम ख़ुदा कहें अपना क़दम क़दम पे न क्यूँ अहल-ए-कारवाँ भटकें वो राहज़न है जिसे रहनुमा कहें अपना हमारे पास ठहरता है अजनबी की तरह रविश जब उस की हो ऐसी तो क्या कहें अपना वो रू-ब-रू है तो होती है ख़ुद-शनासाई जमाल-ए-यार को हम आईना कहें अपना तिरे सुलूक पर अब ये सवाल उठता है तुझे पराया कहे जाएँ या कहें अपना 'रिशी' हुआ तो है अपने भी हाल का पुरसाँ वो शख़्स हम जिसे दर्द-आश्ना कहें अपना