किश्त-ए-एहसास में थोड़ा सा मिला लेंगे तुझे फिर नई पौद की सूरत में उगा लेंगे तुझे क्या ख़बर काम का लम्हा कोई हाथ आ जाए कासा-ए-वक़्त किसी रोज़ खंगालेंगे तुझे इक फ़क़त तेरी तवज्जोह से तिरे प्यार तलक रफ़्ता रफ़्ता ही सही अपना बना लेंगे तुझे सरहद-ए-वक़्त के उस पार तू जाने दे मुझे ऐ ग़म-ए-यार! वहाँ पर भी बुला लेंगे तुझे न मचा शोर उमँडते हुए दरिया मेरे वर्ना इफ़रीत समुंदर के ये खा लेंगे तुझे ज़िंदगी हम से तिरी आँख-मिचोली कब तक इक न इक रोज़ किसी मोड़ पे आ लेंगे तुझे काम आ ही गई 'सारिम' तिरी आशुफ़्ता-सरी क़ाफ़िले इश्क़ के अब राह-नुमा लेंगे तुझे